साधना की सर्वोत्तम सिद्धि प्राप्त करने हेतु योग्यवान बनें : कृष्णगिरी पीठाधीश्वर जगद्गुरु वसंत विजयानंद गिरी जी

Krishnagiri Peethadhishwar Jagadguru Vasant Vijayanand Giri Ji
भव्यता के साथ जगद्गुरु पदारोहण पट्टाभिषेक कार्यक्रम 9 मार्च को कृष्णगिरी में
कृष्णगिरी। Krishnagiri Peethadhishwar Jagadguru Vasant Vijayanand Giri Ji: सतयुग हो या द्वापर युग उन युगों में व्यक्ति को सत्संग की जरूरत नहीं थी, सत्संग की महत्ती आवश्यकता है आज के कलयुग में। क्योंकि मनुष्य का शत्रु काम, क्रोध और विकार के रूप में कब राक्षस के रूप में प्रकट हो जाए पता नहीं चलता, तभी आज के दौर में खून के रिश्ते भी तार तार हो रहे हैं। कहीं किसी स्तर पर लाज, लज्जा अथवा भय नहीं रह गया है। यह कहा परमहंस परिव्राजकाचार्य अनन्त श्री विभूषित कृष्णगिरी पीठाधीश्वर जगद्गुरु 1008 परम पूज्यपाद श्री वसन्त विजयानन्द गिरीजी महाराज ने।
वे यहां शक्तिपीठ तीर्थ धाम में 9 मार्च को अपने 56 में प्राकट्योत्सव एवं जगद्गुरु पदारोहण पट्टाभिषेक कार्यक्रम से पूर्व आयोजित पांच दिवसीय कार्यक्रम में शामिल भक्तों को संबोधित कर रहे थे। गुरुवार को शुक्ल पक्ष की उत्तम सप्तमी तिथि, गुरुओं के गुरु जगत गुरु भगवान श्रीकृष्ण के रोहिणी नक्षत्र के अद्भुत संयोग का बखान करते हुए देश और दुनिया भर के विभिन्न प्रांत, शहरों से आए सैकड़ों श्रद्धालुओं से उन्होंने कहा कि मनुष्य के लिए ज्ञान लेने का कोई समय निर्धारित नहीं होना चाहिए। सत्संग संसार की स्वच्छंदता से मुक्त करके अनुशासन एवं ताकत दिला सकता है। कृष्णगिरी स्थित विश्व प्रसिद्ध श्रीपार्श्व पद्मावती शक्ति पीठ तीर्थ धाम को साधकों की पतित पावन पवित्र सुरम्य भूमि बताते हुए श्री वसंत विजयानंद गिरी जी महाराज ने कहा कि यहां सिद्धि के लिए साधना ही होती है। वर्तमान परिपेक्ष में साधना को विस्तार से परिभाषित करते हुए परिव्राजकाचार्य जगद्गुरुजी ने कहा कि दुर्गुणों का सतत अवलोकन विकारों की स्वीकृति एवं किसी भी प्रकार के मद से दूर रहना सच्ची साधना है। अर्थात स्वयं के विकारों का अवलोकन करने व सधना ही साधना है। उन्होंने कहा प्रकृति का नियम कहता है सधने वाले व्यक्ति के जीवन से विकार स्वत: नष्ट होकर संयम में बदल जाते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि विकास ने पूर्ण चक्र के लिए प्रकृति सतत प्रयास करती है। पूज्यपादश्री जगद्गुरुजी ने कहा कि धन, आरोग्य, आत्मज्ञान एवं मुक्ति के लिए की जाने वाली साधना की सर्वोत्तम सिद्धि प्राप्त करने के लिए तो योग्यवान बनना सर्वथा आवश्यक है। उन्होंने बताया कि एक मनुष्य का मन प्रतिदिन 60 हजार प्रकार के विचार करता है। मन से बने मनुष्य की विस्तार से व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि योग साधना से ही विकारों के विचार नष्ट होंगे और किसी भी प्रकार की साधना के लिए सधना ही जरूरी है। इससे पूर्व सुबह के सत्र में देवी मां पद्मावती की चमत्कारिक प्रतिमा का उपस्थित श्रद्धालु भक्तों ने सैकड़ो किलो केसर युक्त दुग्ध से अभिषेक किया। फिर साधना कक्ष में मंत्र जाप किया। शाम के सत्र में पूज्यपाद गुरुदेवश्रीजी की पावन निश्रा में 16 दिवसीय श्री भैरव पद्मावती हवन यज्ञ में अनेक बीज मंत्रों के साथ काशी के विद्वान पंडितो द्वारा आहुतियां का क्रम जारी रहा। महा आरती के साथ संपन्न हुए कार्यक्रम में आगंतुक सभी श्रद्धालुओं ने भोजन प्रसाद ग्रहण किया। कार्यक्रम का सीधा प्रसारण संतश्रीजी के अधिकृत यूट्यूब चैनल थॉट योगा पर लाइव प्रसारित किया जा रहा है।